क्या आप जानते हैं?क्या लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी कहना सही है?

इतिहासकार चाहे तो खलनायक को भी नायक बना सकते हैं ।हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानी एवं समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक के बारे में हम इतिहास की किताबों से किस तरह की झलक पाते हैं? ऐसी?

  1. लोकमान्य
  2. समाज सुधारक
  3. स्वतंत्रता सेनानी
  4. उनका दिया हुआ नारा, “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
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क्या लिखा है एनसीईआरटी ( NCERT)की किताबों में?

किसी अंधविश्वासों का विश्लेषण करने से पहले जब छठी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा की एनसीईआरटी (NCERT) खंगालने की कोशिश की गयी तो पाया कि सिर्फ़ आठवीं की किताब Our Past-3 में ये शब्द मिले-    

                                             Source: NCERT book (Our Past-3)

सत्रह साल तक की उम्र के बच्चों को हम सिवाय इस बात के कि उन्होंने कहा “ स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” और वो गरम दल के थे इसके अलावा हम उन्हें कुछ और जानने के लायक़ नहीं समझते लेकिन अट्ठारह साल का होते ही उसको वोट देने का अधिकार भी मिल जाता है। या फिर इतिहासकार हमसे कुछ छिपाना चाहते हैं?

एनसीईआरटी(NCERT) की किताबों से आगे?

आगे इतिहास की किताबों में हम पढ़ते है कि तिलक ने तापीबाई नाम की महिला से शादी की और बाद में उनका नाम बदलकर सत्यभामाबाई रख दिया( और अगर पत्नी बदल देती पति का नाम तो?)। उनको लोकमान्य का टाइटल दिया गया ।महात्मा गाँधी ने उनको आधुनिक भारत का निर्माता कहा।उनका ये नारा भी बहुत प्रसिद्ध है, “ स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसको लेकर रहूँगा”। समाज सुधारक भी उनको कहा जाता है। [1]


महिलाओं के बारे में उनके क्या विचार थे?

ऊपर जो एनसीईआरटी की किताब का पेज मैंने दिखाया है उसमें तिलक के पास एक अख़बार रखा हुआ है नाम है Mahratta । इसी अख़बार के माध्यम से वो ज़हर उगला करते थे। ये देखिए 13 नवम्बर 1885 को महिलाओं की योग्यता पर प्रश्न उठाते हुए कहते हैं कि अगर मनुष्य के ज्ञान को बढ़ाने की बात आती है तो बहुत कम महिलाओं के नाम सामने आते है और आने वाली सदियों में भी कोई उम्मीद नही कि वो कुछ कर पाएं—

“Do you seriously hope, are you really in earnest that our women will do anything in the direction of original literature for centuries to come? …. I know of very few female names who have added perceptibly to the stock of human knowledge or have modified by their brain production the current of human thought.”(Mahratta, 13 November 1885, p. 3: ‘Female Education’.)[2]

आगे वो लिखते हैं कि शास्त्र और रीति रिवाज चाहते हैं कि एक लड़की वैवाहिक जीवन के लायक़ बने और अगर स्कूल उसको ये ट्रेनिंग नही देते तो फिर वो स्कूल बेकार से भी ज़्यादा ख़राब हैं।

Our shastras and customs require a girl to qualify herself for a married life and if our schools cannot give them necessary training they are worse than useless.”(Mahratta, 13 November 1885, p. 3: ‘Female Education’.)[3]

उनके अनुसार महिलाओं को शिक्षा देने से उनका स्त्रीत्व ख़त्म हो जाता है और शिक्षा के बाद वो ख़ुश सांसारिक जीवन नहीं जी सकती( कमाल है शिक्षा से पुरुषों का पुरुषत्व बना रहता है)—

English education deprives women of femininity, after achieving this they cannot live a happy worldly life.[4]

लड़कियों की शिक्षा के बारे में उन्होंने कहा कि-

लड़कियों को स्कूलों में तीन घंटे से ज़्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए ताकि बाकी वक्त में वो घरेलू काम सीख सके।


ग़ैर ब्राह्मणों की शिक्षा के बारे में उनके क्या विचार थे?

यहां समाज सुधारक तिलक का मानना था कि किसानों को शिक्षा देना किसी काम का नही है। पढ़ना लिखना और गणित भूगोल की जानकारी उन्हें नुकसान पहुंचाएगी। गैर ब्राह्मणों को बढ़ई का काम,लुहार का काम या दर्जी का काम इत्यादि ही सिखाया जाना चाहिए। जो उनका समाज मे दर्जा है उसी के हिसाब से उन्हें काम करना चाहिए।

He argued that ‘subjects like History, Geography Mathematics and Natural Philosophy ... have no earthly use in practical life’. Tilak explained that teaching reading, writing, and the rudiments of history, geography and mathematics to Kunbi (peasant) children would actually harm them.

स्कूल खोलने का विरोध

पूना सार्वजनिक सभा ने अंग्रेजी सरकार से मांग की कि जिस भी गांव की आबादी 200 लोगों से ज्यादा है वहाँ हर गाँव मे एक स्कूल खुलना चाहिए। समाज सुधारक तिलक ने इसका विरोध करके कहा कि टैक्स से वसूले गए पैसे को कहाँ खर्च करे ये हक़ सिर्फ टैक्स देने वालों को है।

Tilak countered that ‘it was not public money as the entire population did not pay taxes and it was taxpayer’s money and only the taxpayers had a right to decide how this money was spent’

तिलक की जातिवादी मानसिकता

महान समाज सुधारक तिलक की नज़र में जाति राष्ट्र निर्माण का आधार होती है। उनका मानना था कि अगर गैर ब्राह्मणों को शिक्षा मिली तो पढ़े लिखे ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा। उनका मानना था कि रानाडे जैसे समाज सुधारक जाति को खत्म करने की बात करके राष्ट्र की प्राण शक्ति को कम कर रहे है।


स्कूली बच्चों के बारे में

उनके अनुसार जो बच्चे स्कूलों में ये कहते हैं कि भगवान कहाँ है उन्हें बेंत मारकर चुप करना चाहिए।

रकमाबाई का मामला

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उस वक्त ये मामला काफी चर्चा में आया। रकमा बाई ने मारपीट के डर से अपने पति को छोड़ दिया था। तिलक ने महरत्ता अखबार(Mahratta) में लिखा कि रकमा बाई और पंडिता रमाबाई जैसी औरतों को वो ही सजा मिलनी चाहिए जो व्यभिचार करने वालो को और मर्डर करने वालो को मिलती है।

Child bride Rukhmabai was married at the age of eleven but refused to go and live with her husband. The husband sued for restitution of conjugal rights, initially lost but appealed the decision. On 4 March 1887, Justice Farran, using interpretations of Hindu laws, ordered Rukhmabai to "go live with her husband or face six months of imprisonment". Tilak approved of this decision of the court [5]

विवाह के लिए उम्र की सहमति का विवाद

जब रानाडे ने विवाह की उम्र को 10 साल से बढ़ाकर 12 साल करने का प्रस्ताव रखा तो तिलक ने इसका घोर विरोध किया। दरअसल ये मुद्दा तब चर्चा में आया था जब 11साल की फूलमणि नाम की लड़की की शादी 35 साल के व्यक्ति से हुई और शारीरिक संबंध बनाते वक्त बच्ची की मौत हो गई। तो तिलक इसपर क्या कहते हैं—

मैती(फूलमणि के पति का नाम) पहले ही अपनी पत्नी खो चुके उनको अब और परेशान नही करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सरकार को कोई हक नही है हमारे रीति रिवाजों में दखलंदाज़ी करने का—

"We would not like that the government should have anything to do with regulating our social customs or ways of living.[6]

किसानों के खिलाफ

19वी शताब्दी के सत्तर के दशक के आखिर में अकाल पड़ा था । लगान देने के लिए किसानों के पास कुछ नही था। उनपर कर्जे का बोझ बढ़ गया था। तो अपने प्यारे समाज सुधारक तिलक जी कहते हैं कि—

सूदखोर काश्तकारों के भगवान होते है जो किसान उनका पैसा नहीं लौटा रहे उनको जेल भेजने का कानून लाया जाना चाहिए।

जब अंग्रेजों ने किसानो की सहायता करनी चाही तो तिलक ने उनका विरोध किया—

He criticised the British “for destroying the harmony in the villages by interfering on behalf of the peasants.[7]

तिलक खुद भी सूदख़ोरों के परिवार से थे तो शायद उनका ये विरोध स्वाभाविक था।[8]


क्या वो सचमुच स्वराज्य चाहते थे?

उनके लिए ’ स्व ‘ का मतलब जिनको वो पसंद करते थे।वो किसानो के ख़िलाफ़ थे,महिलाओं के ख़िलाफ़ थे,ग़ैर ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ थे फिर उनके ‘स्व’ में बचते ही कितने लोग है। वो घोर जातिवादी मानसिकता के थे। जाति को राष्ट्र का आधार मानते थे। ऐसा स्वराज डर ज़्यादा पैदा करता है।

क्या वो सचमुच समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे?

परमपिता परमेश्वर से हाथ जोड़कर प्रार्थना,🙏 है(वैसे तो तेरा रिकॉर्ड भी खराब ही है) कि ऐसा महान समाज सुधारक किसी अभागे देश को भी नसीब ना हो।


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Image & News Source: Quora & Google Baba



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